ज्ञानवापी पर हिन्दू पक्ष का बड़ा दावा ,औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने के का आदेश दिया था मस्जिद बनाने का नहीं मुस्लिम पक्षछोड़े अपना दावा

वाराणसी :- इस पुरे प्रकरण पर विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी की तरतफ से उनके वकील शशांक शेखर त्रिपाठी ने काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत कुलपति तिवारी की ओर से उनके अधिवक्ता शशांक शेखर त्रिपाठी द्वारा पत्रकार वार्ता को संबोधित किया गया पत्रकार वार्ता करते हुए अधिवक्ता शशांक शेखर त्रिपाठी ने बताया कि हिंदू मंदिर अखंड ऊर्जा का स्रोत होते हैं

वाराणसी :- इस पुरे प्रकरण  पर विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत  कुलपति तिवारी की तरतफ से उनके वकील  शशांक शेखर त्रिपाठी ने काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत कुलपति तिवारी की ओर से उनके अधिवक्ता शशांक शेखर त्रिपाठी द्वारा पत्रकार वार्ता को संबोधित किया गया पत्रकार वार्ता करते हुए अधिवक्ता शशांक शेखर त्रिपाठी ने बताया कि हिंदू मंदिर अखंड ऊर्जा का स्रोत होते हैं और  मंदिरों की रचना वह निर्माण भी विभिन्न शास्त्रोक्त शैलियों में होते हैं जिस प्रकार से आकाशीय पिंडों में उर्जा होती है और ऊर्जा  की गणना नक्षत्रों पर आधारित ज्योतिषीय पद्धति से होती है उसी प्रकार से मंदिर निर्माण भी विशेषसैलियो  में होते हैं वाराणसी के ज्ञानवापी स्थित अविमुक्तेश्वर महादेव का मंदिर जो वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है का निर्माण भी सर्वतो भद्र शैली में हुआ है इस पर चर्चा करते हुए शशांक शेखर त्रिपाठी ने कहा कि औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ और बिंदु माधव के मंदिरों को तोड़ा गया परंतु औरंगजेब द्वारा इन मंदिरों के ध्वंसावशेष पर मस्जिद बनाने का कोई आदेश नहीं दिया गया था मंदिर तोड़े जाने के बाद स्थानीय लोगों ने गलत तरीके से वहां मस्जिद तामिल करा दी , जो कि इस्लाम के मूल सिद्धांत के खिलाफ है परम पूज्य मोहम्मद साहब ने मस्जिद बनाने के लिए जोर इतनी तो निर्धारित की थी उसका उल्लंघन करते हुए हिंदू मंदिरों को तोड़कर उनके ध्वंसाअवशेष पर मस्जिद बनाई गई जो कि इस्लाम के सिद्धांतों का उल्लंघन है औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर उस जगह को वक़्फ़ भी नहीं किया था, अर्थात अल्लाह को समर्पित नहीं की थी क्योंकि उस प्रकार की भूमि अल्लाह को समर्पित भी नहीं की जा सकती है ऐसा हम इस्लामिक रीति वन नीति से समझ सकते हैं इस नाते मुस्लिम बंधुओं को अपना कब्जा मंदिर परिसर से छोड़ देना चाहिए मंदिर की कुछ विशेषताएं वह उनकी शैली के बारे में तथ्य भी दिए गए हैं विश्वेश्वर वहां अभी मुक्तेश्वर का मंदिर सृष्टि के आरंभ से ही काशी में विराजमान है वर्तमान मंदिर जिसका निर्माण 1585 में महा महा महा पंडित नारायण भट्ट द्वारा बनवाया गया था

विश्वेश्वर मंदिर ( 1585 )
यह मुद्दा कोई 31 वर्ष पुराना मुद्दा या कोई दीन मो. केस से जुड़ा मुद्दा नही , यह वो स्याह पन्ना है जो हिन्दुओं की आस्था से 353 वर्षों से जुड़ा हुआ है । जैसे कि हम कई दशकों से देखते आ रहे कि तमाम उतार चढ़ाव के साथ वर्षों से चलता आ रहा है । बहुत सी बाते हैं जो बीते वर्षों और हाल के दिनों में सर्वे होने पर बहुत सी बातें सामने आई साथ ही साथ कुछ और भी बातें हैं जो गौर करने योग्य है जैसे कि मंदिर निर्माण शैली , मण्डल , यंत्र , चक्र आदि तमाम चीजें हैं जो सनातन धर्म के शास्त्रों में वर्णित है । सवाल यह है कि यह सब चीजें थी कहां और अभी तक सामने क्यों नहीं आई , वो इसलिए कि मुगलों के आगमन से ही शास्त्रो को समाप्त किया जाने लगा और ही रही सही कसर अंग्रेजों के आने के बाद मैकाले की  शिक्षा व्यवस्था सो काल्ड वैस्टर्न आइज़ एजुकेशन ने पूरी कर दी ।

हाल के दिनों में सर्वे हुए और जो चीजें सामने आईं जिससे समस्त हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों में उम्मीद की किरण दिखाई दी । कुछ और नए तथ्य है जो अभी - अभी सामने आए हैं और जिन्हें लोगों तक पहुँचाना जरुरी है | यह मंदिर बस एक मंदिर नहीं , बल्कि ऐसा शास्त्रो पर आधारित मंदिर है जिसका विज्ञान के विविध आयामों से सम्बन्ध है । वैदिक साहित्य में जिन निर्माण शैलियों का वर्णन है उसी आधार पर इस मंदिर का निर्माण महामनीषी पं नारायण भट्ट द्वारा कराया गया । यदि आप भारत और उसके प्राचीन अतीत को देखे तो यह मंदिर निर्माण के मौलिक विज्ञान और उद्देश्य को प्रकट करता है । प्रार्थना या पूजा स्थल होने के बजाय मंदिरों को शक्तिशाली रुप में बनाया जाता था । जहां व्यक्ति निहित ऊर्जा को आत्मसात कर सके।
 उदाहरण के तौर पर जेम्स प्रिसेप ने यो नक्शा बनाया वो बस पश्चिमी दीवार और वहां पर बड़े अवशेषों के आधार पर बनाया या मंदिर निर्माण कला का ज्ञान रखने वालो की मदद से बनाया क्योंकि बिना किसी की मदद के इतना सटीक और सही बना पाना संभव नही है

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जेम्स प्रिंसेप  (1799 - 1840) एक अंग्रेजी विद्वान, प्राच्यविद् और पुरातनपंथी थे।  वह एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के जर्नल के संस्थापक संपादक थे और उन्हें प्राचीन भारत की खरोष्ठी और ब्राह्मी लिपियों को समझने के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है।  उन्होंने बनारस में टकसाल में एक एसै मास्टर के रूप में भारत में अपने करियर को आगे बढ़ाने के अलावा, मुद्राशास्त्र, धातु विज्ञान, मौसम विज्ञान के कई पहलुओं का अध्ययन, दस्तावेज और चित्रण किया।
प्रिंसेप ने जो नक्शा बनाया वो कुछ और नही हमारी ही शैली , मण्डल , चक्रो पर आधारित है । जिसे पंचायतन व सर्वतोभद्र शैली कहते हैं । अब सर्वतोभद्र बस शैली ही नहीं मण्डल और चक्र भी है । जैसे सर्व त्रैलोक्यदीपक  यह काशी है ठीक उसी तरह यह मण्डल भी है जिसे बाद में बीएचयू के प्रो. ए .एस. अल्टेकर ने अध्ययन करके उसमें ४ मण्डपों का उल्लेख किया और इन मण्डपों का उल्लेख 16वीं सदी में दत्तात्रेय संप्रदाय के सन्यासी गंगाधर सरस्वती के लिखे गए ' गुरुचरित्र ' नामक ग्रंथ में जिक्र किया गया है । इस ग्रंथ में उन्होंने अपने गुरु नरसिंह सरस्वती की काशी यात्रा का वर्णन किया था । गुरुचरित्र के 42 वें भाग की 57 वीं चौपाई में लिखा गया है ...
महेश्वराते पूजोनि । ज्ञानवापीं करी स्नान । नंदिकेश्वर अर्चान । तारकेश्वर पूजोन । पुढें जावें मग तुवां ॥५७ ॥

यहीं नही जो 42वां भाग है वो पूरा विश्वेश्वर मंदिर और ज्ञानवापी कूप के बारे में बताते हुए लिखा गया है जो मराठी और कोंकणी भाषा में है | शास्त्रों में इसकी महत्ता बताते हुए वर्णन है
न विश्वेश्वर समो लिंगम् । न काशी सदृशी पुरी ॥
 न मणिकर्णिका समो तीर्थम् । नास्ति ब्रह्माण्ड गोलके ।

पंडित नारायण भट्ट ने जब मंदिर का निर्माण किया तो उन्होंने ग्रंथ त्रिस्थली सेतु लिखा जिसमें प्रयाग काशी और गया की महत्ता के बारें में बतलाया गया है इसका हिंदी अनुवाद काशी सर्वप्रकाशिका है जिसमें श्लोको के माध्यम से काशी और मुख्यत: विश्वेश्वर मंदिर के बारे बताया गया है


प्रश्न ये उठता है कि जो मंदिर तोड़े गए कि उसका कोई दस्तावेज या कुछ एसा साक्ष्य है तो इसपर तो 16वीं से लेकर 20वीं शताब्दी तक जो विदेशी यात्री आए या यहां अधिकारी नियुक्त हुए उन्होंने अपनी अपनी किताबों में इसका वर्णन किया जैसे
लंदन के एक व्यापारी राल्फ फिच की यात्राओं पर आधारित   - अर्ली ट्रैवल्स इन इण्डिया
ब्रिटिश व्यापारी व यात्री पीटर मण्डी की किताब - द ट्रैवल्स आफ पीटर मण्डी इन यूरोप एन एशिया वाल्यूम 2
अंग्रेजी चित्रकार विलियम होजेज़ की यात्राओं पर आधारित -
ट्रैवल्स इन इण्डिया ड्यूरिंग द इयर्स 1780 1781 1782 एण्ड 1783
एक अंग्रेजी एंग्लिकन बिशप और लेखक रेज़िनाल्ड हैबर द्वारा लिखित - नैरेटिव आफ अ जर्नी थ्रू द अपर प्रोविंसेस आफ इण्डिया
इन सब किताबों में औरंगजेब के आदेश पर ही मंदिरों के तोड़े जाने का वर्णन मिलता है और तो और खुद साकी मुस्तकी खां द्वारा लिखित मासिर-ए-आलमगिरी में बकायदे तारीख के साथ फरमान देने और मंदिर तोड़े जाने के बारे में लिखा है तो इस बात के पर्याप्त साक्ष्य है और सब यही इशारा करते है कि उस दौर में औरंगजेब के आदेश से ही मंदिर टूटे और इसके फरमान आज भी कलकत्ता की एशियाटिक लाइब्रेरी और राजस्थान स्टेट आर्काइव, बीकानेर में आज भी सुरक्षित रखे हुए है
यही नही 1965 में छपे उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट गैजेटियर का वाराणसी गैजेट खुद इस बात की पुष्टि करता है

अब अगर मंदिरो की शैली की बात करें तो बस नागर शैली वेसर शैली और द्रविड़ शैली ही नही  बल्कि प्रवेश और प्रदक्षिणा पथ के आधार पर ३ शैलियां हुआ करती थी सन्धार ,निरन्धार और सर्वतोभद्र इसके साथ ही शिखरों की भी शैलिया हुआ करती है जिन्हें वलाभी फामसाना और लैटिना प्रमुख है इन सभी के बारे मंदिर निर्माण शैली और शिल्पशास्त्र पर आधारित पुस्तकों में विस्तार पूर्वक लिखा गया है
अब आते है सबसे प्रमुख ......सर्वतोभद्र पर
ये बस शैली नही...मण्डल भी है चक्र भी है व्यूह भी  है
अगर मण्डल की बात करे तो इसमें 57 देवता निवास करते है और यह कोष्ठक पर आधारित है जैसा कि वास्तुपुरुष मण्डल होता है , चक्र को देखे तो हिंदू ज्योतिष में सर्वतोभद्र चक्र  नक्षत्रों पर आधारित भविष्यवाणी के लिए एक अनूठी तकनीक है । यह एक प्राचीन प्रणाली है क्योंकि यह अभिजीत नक्षत्र को ध्यान में रखती है जिसे अब ज्योतिषीय भविष्यवाणियां करने के लिए आमतौर पर नियोजित विधियों से संबंधित मामलों में संदर्भित नहीं किया जाता है ।  सर्वतोभद्र शब्द सर्व ( सर्व ) से निकला है । जिसका अर्थ है- सभी , और भद्रा ( भद्रा ) ) अर्थ अच्छा या शुभ मतलब समग्र शुभता । 

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